मन बहौ जाए वा यमुना के संग

हम शाम लगभग पाँच बजे जानकीचट्टी पहुँच गए। अति शीतल हवा और बर्फ के नन्हे कणों के समान फुहारों ने हमें स्वागत में दाँत किटकिटाने का अवसर प्रदान किया। हमने गर्म कपड़े तो पहन नहीं रखे थे। बंद गाड़ी में क्या ठंड? पर बाहर निकलते ही हालत खराब। बस जैसे-तैसे होटल तक पहुँचे। गर्म पानी से हाथ मुँहधोए और कमरे में ही चाय और खाना खाकर सो गए।
पहाड़ों पर होटल के सेवक मन से सेवा करते हैं। उकताते नहीं। हमने एक से कहा सुबह पाँच बजे चाय लेकर आ जाना। फिर सभी लोग इतनी गहरी नींद सोए कि जिस करवट सोए जागे भी उसी करवट।
सुबह चाय पीकर जब बाहर छज्जे में जाकर देखा तो आँखें खुली की खुली रह गयीं। क्या नज़ारा!!!

अलसुबह दिनकर अपनी स्वर्णिम रक्त-रश्मियों से पर्वत श्रंखलाओं को आलोकित कर रहा था। सच है -”ऊँ कृण्वन्तो विश्वं आर्यं”।
सब तैयार होकर चढ़ाई के लिए निकले। लोगों का उत्साह मन उमंग में डुबो रहा था। पैदल चलना हमारे बसकी नहीं सो हम तो टट्टू पर चढ़ गए और लगभग डेढ-दो घंटे के अंदर यमुनोत्री के पावन धाम में विराजमान थे।

पूजा दर्शन के बाद लगे यमुना निहारने। नहीं जानते कि यह हमारे साथ ही था या सभी के कि मन बहौ जाए वा यमुना के संग। मन पिघल कर यमुनामय हो गया।

 

क्या धवल धाराएँ!!! माँ के जल की धवलता! शीतलता! और तीव्रतम गति! साथ में निनाद!!! मानो जलतंरग पर ध्रुपद बज रहा हो। कई पतली मोटी धाराओं में यमुना मैया किलकारी मारती उछलती क्रीड़ामग्न होकर धाविका सी सबको वशीभूत और अभिभूत कर रही थी।
जिस जल में पैर भी ठंड से कटे जा रहे थे उसी में अनेक वृद्ध श्रद्धालु स्नान करके अपनी अतृप्त भावना को शांत कर रहे थे। जबकि वहाँ गर्म जल का कुंड भी है और अधिकाँश श्रद्धालु वहाँ भी स्नान करते हैं पर श्रद्धा और विश्वास अलग ही
ऊर्जा का संचार कर देती है।  

   

दर्शन, अर्चना-पूजा से निवृत्त होकर जब सामने ऊँची पर्वतमालाओं को देखा तो हैरान रह गए। यह क्या सामने इतनी ऊँची पहाड़ी पर जयराम, जय जमुना, जय जानकी जैसे अनेक शब्द लिखे हैं जहाँ पहुँचना नामुमकिन है। बहुत नीचे तली में माँ यमुना तीव्र है तो ऊपर इतनी ऊँचाई! फिर पहाड़ के बीचों-बीच लिखा कैसे! हमने वहाँ के पुजारीजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले यहाँ इतनी बाढ़ आयी कि यमुना का पानी इतनी ऊँचाई तक पहुँच गया और ठंड से जमकर ग्लेशियर बन गया। लोग ग्लेशियर पर चलकर उस पहाड़ी पर लिख आए। अब पानी नीचे है तो आश्चर्य का कारण बन गया है।

कई घंटे यमुनोत्री के अंक में बिताकर भोजन करके हम वापिस हो लिए। सभी ने पैदल उतरने की सोची और चल पड़े। पर यह क्या जैसे ही कुछ दूरी पर आए घमासान बारिश होने लगी। तेज बारिश में बरसाती लंबा कोट पहनकर और छतरी लगाकर उतरना एक मज़ेदार, रोमांचक और अनोखा अहसास था। बारिश थी कि थमने का नाम न ले रही थी और हम थे कि रुकने की सोच भी नहीं रहे थे जबकि छतरी बार-बार डिश एन्टीना बन रही थी और तेज़ ठंडी हवा थप्पड़ मार-मार कर हमें रोकने की कोशिश कर रहे थी। पर हम कहाँ मानने वाले। शाम साढ़े छः बजे के आसपास हम होटल पहुँच गए और फिर सूखे कपड़े पहनकर चाय पीकर रजाई में घुस गए। ठंड इतनी कि खाना भी रजाई में बैठकर खाया और सुबह नए प्रस्थान के लिए बेहोशी की नींद सो गए।

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